साहित्य एवं संगीत को समर्पित मुरादाबाद की संस्था 'हरसिंगार' के तत्वावधान में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भवन में प्रख्यात साहित्यकार कीर्तिशेष माहेश्वर तिवारी की प्रथम पुण्यतिथि पर 16 अप्रैल 2025 को आयोजित भव्य समारोह में देहरादून से प्रकाशित प्रतिष्ठित साहित्यिक मासिक पत्रिका 'सरस्वती सुमन' के "माहेश्वर तिवारी स्मृति विशेषांक" का लोकार्पण किया गया तथा पत्रिका के यशस्वी सम्पादक आनन्द सुमन सिंह को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल भेंट कर 'माहेश्वर तिवारी स्मृति सम्मान' से सम्मानित किया गया।
कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ कार्यक्रम में साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय के संस्थापक डॉ. मनोज रस्तोगी ने कीर्तिशेष दादा माहेश्वर तिवारी जी का परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा ....22 जुलाई 1939 को जनपद बस्ती (संत कबीर नगर) के ग्राम मलौली में जन्में माहेश्वर तिवारी ने मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास में न केवल हिन्दी काव्य की विधा नवगीत को जन्म दिया बल्कि उसे पल्लवित और पुष्पित भी किया। यही नहीं उन्होंने यहां एक ऐसा साहित्यिक परिदृश्य भी निर्मित किया जिसमें समकालीन और पूर्ववर्ती लेखन पर विचार-विमर्श हो और रचनाकर्म में मानवीय संवेदनाओं तथा जनसरोकारों की बात हो ।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए योगेन्द्र वर्मा व्योम ने लोकार्पित "माहेश्वर तिवारी स्मृति विशेषांक" के संदर्भ में जानकारी दी कि इस दस्तावेजी विशेषांक में देश भर के 51 साहित्यकारों के सारगर्भित आलेख और 17 साहित्यकारों के श्रद्धांजलि गीतों के अलावा माहेश्वर जी के गीत, गजलें, दोहे और एक कहानी सम्मिलित की गई है। इसके अतिरिक्त माहेश्वर जी से प्रयागराज के गीतकार यश मालवीय द्वारा लिया गया साक्षात्कार भी शामिल किया गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने कहा कि माहेश्वर तिवारी जी अपने समय के बड़े नवगीतकारों में शामिल थे। कविता के ताजेपन और भावों की भंगिमा के टटकेपन को धारदार बनाने का काम उन्होंने बड़ी दक्षता के साथ किया। वह भारतीय सांस्कृतिक चेतना के सागर के गोताखोर थे।
मुख्य अतिथि मंडलीय उपनिदेशक कृषि रक्षा प्रशांत कुमार ने कहा कि माहेश्वर तिवारी जी का समूचा सृजन मुरादाबाद ही नहीं देश की समृद्ध साहित्यिक विरासत है। अपनी विरासत को याद करना और याद रखना दोनों ही महत्वपूर्ण है, माहेश्वर जी अपने गीतों के माध्यम से हमारे बीच हमेशा जीवित रहेंगे।
सम्मानित व्यक्तित्व आनंद सुमन सिंह ने कहा कि माहेश्वर जी एक बड़े साहित्यकार थे। उनकी स्मृति में सरस्वती सुमन का अप्रैल 2025 अंक माहेश्वर तिवारी स्मृति अंक के रूप में प्रकाशित किया गया है जिसका अतिथि संपादन मुरादाबाद के नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम के द्वारा किया गया है।
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने कहा माहेश्वर तिवारी ने सृजन और मंच दोनों के द्वारा हिन्दी नवगीत को समृद्ध किया। उसे जन जन से जोड़ने का प्रयास किया। उनके नवगीतों में जन जीवन के विविध चित्र और अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति मिलती है।उनकी भाषा शैली, बिंब विधान, प्रतीक विधान प्रभावी हैं और उसकी संवेदना आम आदमी से सहज ही जुड़ जाती है। यही नहीं संप्रेषण की क्षमता बेजोड़ है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में आकाशवाणी रामपुर की पूर्व सहायक केंद्र निदेशक मंदीप कौर ने अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा माहेश्वर जी का आकाशवाणी रामपुर से संबंध केंद्र के स्थापना काल से रहा। उनकी रचनाओं का काव्य सौष्ठव, नवगीतों की शास्त्रीयता, गीतों का प्रवाह, और विराट व्यक्तित्व का प्रभाव, ऐसा अद्भुत कि सभी के दिलों को छुए। जैसी अनोखी कविता, वैसा ही गीत सुनाने का विलक्षण अंदाज़, पारंपरिक शैली से बिल्कुल अलग, बिल्कुल निराला, यही निरालापन, यही अनूठापन माहेश्वर तिवारी जी की पहचान बना।
विशिष्ट अतिथि के के मिश्र ने कहा कि माहेश्वर तिवारी का सान्निध्य मन को ऊर्जा से भर देता था। दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा कि मुरादाबाद की साहित्यिक गतिविधियों के वह केंद्र बिंदु थे । उनकी उपस्थिति के बिना कोई भी साहित्यिक आयोजन अधूरा माना जाता था।
आकाशवाणी रामपुर के वरिष्ठ उद्घोषक असीम सक्सेना ने कहा आकाशवाणी संग्रहालय के लिए उनके तीन घंटे के साक्षात्कार की रिकॉटिंग के दौरान मिला, मैं इसे अपना सौभाग्य ही कहूँगा कि यह अमूल्य रिकॉर्डिंग मैने की। साक्षात्कारकर्ता श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' के हर प्रश्न का इतनी सरलता और सहजता के साथ माहेश्वर जी ने ऐसे जवाब दिया मानो अपनी जिन्दगी की परत दर परत खोल रहे हों। निश्छल मन, सादगी भरी मुस्कान, यह छवि मेरे मन में सदैव विद्यमान रही और आगे भी रहेगी, शायद हमेशा रहेगी।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने संकेत द्वारा उनको सम्मानित किए जाने तथा सागर तरंग प्रकाशन द्वारा उनके नवगीतों का संग्रह सच की कोई शर्त नहीं के प्रकाशन का उल्लेख करते हुए संस्मरण साझा किए।
बाबा संजीव आकांक्षी, विवेक निर्मल, शिखा गुप्ता, डॉ कृष्ण कुमार नाज आदि ने भी यशभारती कीर्तिशेष दादा माहेश्वर तिवारी जी का भावपूर्ण स्मरण करते हुए उनके कालजयी रचनाकर्म पर चर्चा की।
इस अवसर पर स्थानीय रचनाकारों द्वारा कीर्तिशेष दादा माहेश्वर तिवारी जी के कुछ लोकप्रिय गीतों की प्रस्तुति दी गई। उनके सुपुत्र कवि समीर तिवारी ने दादा माहेश्वर जी का भोजपुरी गीत प्रस्तुत किया- "चढ़त असड़वा के बादर,अंखियां में काजर पारै, बुनिया सनेहिया का सागर रहि रहि मनवा में ढारै..."। वरिष्ठ कवयित्री डा. प्रेमवती उपाध्याय ने दादा का गीत प्रस्तुत किया- "याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे...", युवा कवि मयंक शर्मा ने दादा का गीत प्रस्तुत किया- "मन का वृन्दावन हो जाना कितना अच्छा है...", वरिष्ठ कवि वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने दादा का गीत प्रस्तुत किया- " डबडबाई है नदी की आँख बादल आ गए हैं..." कवि एवं शायर मनोज मनु ने दादा का गीत प्रस्तुत किया- " छोड़ आए हम अजानी घाटियों में, प्यार की शीतल हिमानी छाँह..." कवयित्री डा. अर्चना गुप्ता ने दादा का गीत प्रस्तुत किया- "एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है, बेजुबान छत-दीवारों को घर कर देता है..." अतुल गुप्ता ने दादा का गीत प्रस्तुत किया- "यह पीले कुरते सा दिन, नारंगी पगड़ी सी शाम,आजा कर दूं तेरे नाम..." एवं योगेंद्र वर्मा व्योम ने ....एक चिड़िया धड़कनों में चहचहाती है.. गीत प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में ऋचा पाठक, हेमा तिवारी भट्ट, शिखा रस्तोगी, धवल दीक्षित, सुशील शर्मा, दुष्यंत बाबा, डॉ उन्मेश सिन्हा, जय प्रकाश मिश्र, डॉ मीनू मेहरोत्रा, संतोष गुप्ता, राजीव सक्सेना, डॉ प्रदीप शर्मा, रामदत्त द्विवेदी, ओंकार सिंह ओंकार, जिया जमीर, फरहत अली खान, राहुल शर्मा, डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन, राजीव प्रखर, राजू , राजीव व्यास, शिवम वर्मा आदि उपस्थित थे। संयोजक बाल सुंदरी तिवारी, आशा तिवारी, समीर तिवारी एवं अक्षरा तिवारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति की गई।